15 अगस्त, 2024 को श्री अरबिंदो को उनकी 152 वीं जयंती :-
प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2024 को श्री अरबिंदो को उनकी 152 वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्री अरबिंदो का जीवन परिचय :-Sri Aurobindo Ghosh
- अरबिंद जी के अनुयायी आज पुरे विश्वभर में मौजूद हैं। दोस्तों आज का हमारा आर्टिकल श्री अरबिंदो के जीवन परिचय पर आधारित है। हम सभी को अरबिंदो जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। लेख में हमने अरबिंदो जी के जीवन, विचार, रचनायें आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है।
- यदि आप भी अरबिंदो जी के जीवन और विचारों को समझना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
- भारतीय राष्ट्रवादी श्री अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, दार्शनिक एवं कवि थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से सार्वभौमिक मोक्ष का दर्शन' प्रतिपादित किया।
- श्री अरबिंद ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य के नाम कर दिया था।
पूरा नाम | श्री अरविन्द घोष |
उपनाम | अरबिंदो |
जन्म तिथि (Date of birth) | 15 अगस्त 1872 |
जन्मस्थान (birthplace) | कोलकाता, भारत |
उम्र (Age) | मृत्यु के समय आयु (78 वर्ष) |
शिक्षा (Education) | कैंब्रिज यूनिवर्सिटी |
मृत्यु तिथि (Date of Death) | 5 दिसम्बर 1950 |
मृत्यु स्थान (place of death) | पुंडुचेरी |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
राष्ट्रीयता(Nationality) | भारतीय |
- श्री अरबिंद के द्वारा रचित रचनायें हमारे वेदों, गीता और उपनिषदों के रहस्यों को हमारे सामने उजागर करती है।
- अरबिंद जी के द्वारा लिखे गए योग साधना के ग्रंथ मौलिक ग्रन्थ हैं जो हमें योग साधना का ज्ञान देते हैं।
- उनकी शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई।
- उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ उन्होंने दो शास्त्रीय और कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में कुशलता प्राप्त की।
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उनकी राजनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप उन्हें वर्ष 1908 (अलीपुर बम कांड) में गिरफ्तार कर लिया गया था।
- दो वर्ष पश्चात अरविन्द ब्रिटिश भारत से पलायन कर गए एवं पांडिचेरी (पुद्दुचेरी) के फ्रांसीसी उपनिवेश में शरण ली तथा वहाँ उन्होंने अपने पूरे जीवन को एक पूर्ण और आध्यात्मिक रूप से परिवर्तित जीवन के उद्देश्य से अपने अभिन्न योग के विकास के हेतु समर्पित कर दिया।
- अरबिंदो घोष ने बड़ौदा और कलकत्ता में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
- पांडिचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के एक समुदाय की स्थापना की, जो कालांतर में 'श्री अरबिंदो आश्रम' के रूप में प्रसिद्ध हुई।
- इनकी साहित्यिक कृतियों में बंदे मातरम (अंग्रेज़ी अखबार, वर्ष 1905 में), योग के आधार, भगवतगीता और उसका संदेश, मनुष्य का भविष्य विकास, पुनर्जन्म और कर्म, सावित्रीः एक किंवदंती और एक प्रतीक एवं आवर ऑफ गॉड शामिल हैं।
- प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2022 को आध्यात्मिक नेता श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती को चिह्नित करने के लिये एक 53 सदस्यीय समिति का गठन किया था।
- 5 दिसंबर, 1950 को पांडिचेरी में उनका निधन हो गया।
श्री अरबिंदो की शिक्षा :-
- श्री अरबिंदो के पिता डॉ कृष्णधन घोष चाहते थे कि वे उच्च शिक्षा ग्रहण कर उच्च सरकारी पद प्राप्त करें।
- इसी कारणवस उन्होंने सिर्फ 7 वर्ष के उम्र में ही श्री अरबिंदो को पढ़ने इंग्लैंड भेज दिया। 18 वर्ष के होते ही श्री अरबिंदो ने ICS की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
- 18 साल की आयु में इन्हें कैंब्रिज में प्रवेश मिल गया। अरविंद घोष ना केवल आध्यात्मिक प्रकृति के धनी थे बल्कि उनकी उच्च साहित्यिक क्षमता उनके माँ की शैली की थी।
- इसके साथ ही साथ उन्हें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, ग्रीक, जर्मन और इटालियन जैसे कई भाषाओं में निपुणता थी। सभी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी वे घुड़सवारी के परीक्षा में विफल रहें जिसके कारण उन्हें भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश नहीं मिला।
द्वितीय विश्व युद्ध पर अरबिंदो के विचार :-
- कई भारतीयों ने द्वितीय विश्व युद्ध को औपनिवेशिक कब्जे से छुटकारा पाने हेतु एक उपयुक्त समय के रूप में देखा तथा अरबिंदो ने अपने हमवतन लोगों से मित्र राष्ट्रों का समर्थन करने और हिटलर की हार सुनिश्चित करने के लिये कहा।
- श्री अरबिंदो ने मन में ठान लिया की उन्हें पुरे जीवन देश की सेवा करनी है और लोगों को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद करवाना है।
- जब श्री अरबिंदो अपनी युवावस्था में थे तो देश में अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देखकर वह एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित हुए।
- श्री अरबिंदो जब गुजरात के बड़ौदा में थे तब बड़ौदा के राजा अरबिंदो से मिलकर बहुत प्रभावित हुए और बड़ौदा नरेश ने Sri Aurobindo Ghosh को अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री के रूप में नियुक्त कर दिया। जहाँ वेतन के रूप अरबिंदो जी को 750 रूपये प्रतिमाह दिए जाते थे।
- स्कूल में श्री अरबिंदो ने प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, निजी सचिव आदि पदों पर रहते हुए अपनी कार्य योग्यता का भरपूर प्रदर्शन किया।
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के संघर्ष में भाग लिया।
- सन 1896 से लेकर वर्ष 1905 के बीच Sri Aurobindo Ghosh ने बड़ौदा की रियासत में राजस्व अधिकारी, फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
- वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन ने अरबिंदो को बड़ौदा में अपनी नौकरी छोड़ने और राष्ट्रवादी आंदोलन में उतरने के लिये प्रेरित किया।
- उन्होंने देश भक्ति पत्रिका ‘वन्दे मातरम’' की शुरुआत की, जो कि याचना के बजाय कट्टरपंथी तरीकों और क्रांतिकारी रणनीति का प्रचार करती थी।
- अंग्रेजों ने उन्हें तीन बार ने गिरफ्तार किया था, दो बार देशद्रोह के आरोप में और एक बार "युद्ध छेड़ने" की साजिश रचने के आरोप में। उन्हें वर्ष 1908 (अलीपुर बम कांड) में गिरफ्तार किया गया था।
- 30 मई 1909 को श्री अरबिंदो ने अपना एक प्रसिद्ध अभिभाषण दिया था जिसे उत्तरपाड़ा अभिभाषण के नाम से जाना जाता है। अपने इस अभिभाषण में Sri Aurobindo Ghosh ने धर्म और राष्ट्र विषय कारावास के ऊपर खुलकर अपने विचार रखे।
- दो वर्ष के बाद वे ब्रिटिश भारत से भाग गए और पांडिचेरी (फ्रांँसीसी उपनिवेश) में शरण ली तथा राजनीतिक गतिविधियों का त्याग कर दिया और आध्यात्मिक गतिविधियों को अपना लिया ।
- उन्होंने पुद्दुचेरी में मीरा अल्फासा से मुलाकात की और उनके आध्यात्मिक सहयोग से “योग समन्वय" हुआ। योग समन्वय का उद्देश्य जीवन से पलायन या सांसारिक अस्तित्व से बचना नहीं है, बल्कि इसके बीच रहते हुए भी हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करना है।
श्री अरबिंदो का परिवार :-
पिता जी का नाम | कृष्णधन घोष |
माता जी का नाम | स्वर्णलता देवी |
भाई | बारीन्द्र कुमार घोष, मनमोहन घोष |
पत्नी | मृणालिनी देवी (विवाह: 1901) |
श्री अरबिंदो के जीवन की प्रमुख उपलब्धियां :-
- श्री अरबिंदो स्वतंत्रता सेनानी में प्रमुख क्रांतिकारी थे।
- वे एक महान कवि भी थे। इनकी रचना का वर्णन विश्वभर में प्रख्यात है।
- 7 साल की आयु से ही विदेश में शिक्षा प्राप्त करने वाले श्री अरबिंदो का वर्णन प्रचंड विद्वानों में होता है।
- वह एक योगी और महान दार्शनिक भी थे।
श्री अरबिंदो की प्रमुख रचनाएँ :-
- श्री अरबिंदो की रचनाओं में गीता का वर्णन, वेदों का रहस्य व उपनिषद का सम्पूर्ण व्याख्यान है
- द रेनेसां इन इंडिया – The Renesan in India
- वार एंड सेल्फ डिटरमिनेसन – War and Self Determination
- द ह्यूमन साइकिल – The Human Cycle
- द आइडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी – The Ideal of Human Unity
- द फ्यूचर पोएट्री – The Future Poetry
अरबिंदो घोष जी की मृत्यु :-
- जीवन के अंतिम समय अरबिंदो घोष अपने पुंडुचेरी के आश्रम में थे और वह लोगों को आध्यात्म एवं क्रांतिकारी के संबंध में दीक्षा दिया करते थे। आश्रम में पढ़ने वाले उनके अनुयायियों ने Sri Aurobindo Ghosh जी के विचारों को पुरे विश्वभर में प्रचारित एवं प्रसारित किया।
- 5 दिसम्बर 1950 को अपने पुंडुचेरी के आश्रम में श्री अरबिंदो ने आखिरी सांस ली और अपने शरीर को त्याग कर ईश्वर का ध्यान करते हुए सम्पूर्णता में विलीन हो गए।
आशा करते हैं कि आपको श्री अरबिंदो का जीवन के ऊपर ब्लॉग पढ़कर अच्छा लगा होगा।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ श्री अरविंद घोष का जीवन परिचय (Rabindranath Tagore Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:
के.आर. नारायणन |
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- समग्र योग का लक्ष्य है आध्यात्मिक सिद्धि और अनुभव प्राप्त करना साथ ही साथ सारी सामाजिक समस्यायों से छुटकारा पाना।
- श्री अरबिंदो ने देश के लिए कई बलिदान दिए और कई ज्ञान भी दिए। उनके अनुसार राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक बल है जो सदैव विद्यमान रहती है और इसमें किसी प्रकार का कोलाहल नहीं होता।
- श्री अरबिंदो ने क्रांतिकारी जीवन त्याग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टि से योग पर अभ्यास किया और दिव्य शक्ति को प्राप्त किया। श्री अरबिंदो का शैक्षिक जीवन भी रहा है जब वे बड़ौदा के एक राजकीय विद्यालय में उपप्रधानाचार्य रह चुके थे।
- श्री अरबिंदो ने अपनी प्रार्थना में यह माँगा कि – “मैं तो केवल ऐसी शक्ति माँगता हूँ जिससे इस राष्ट्र का उत्थान कर सकूँ, केवल यही चाहता हूँ कि मुझे उन लोगों के लिये जीवित रहने और काम करने दिया जाये जिन्हें मैं प्यार करता हूँ तथा जिनके लिए मेरी प्रार्थना है कि मैं अपना जीवन लगा सकूँ|”
- श्री अरबिंदो का जन्म १५ अगस्त १८७२ को कलकत्ता पश्चिम बंगाल में हुआ था।
- श्री अरबिंदो ने पॉन्डिचेरी में एक आश्रम कि स्थापना की जिसका नेतृत्व मीरा अल्फासा से अपने मृत्यु २४ नवम्बर १९२६ तक किया जिन्हे माँ के नाम से पुकारा जाता था।
- श्री अरबिंदो के अनुसार जीवन एक अखंड प्रक्रिया है क्यूंकि यही एक माध्यम है जिससे मानव जाति सम्पूर्ण रूप से सत्य और चेतना का अभ्यास कर दिव्य शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।
- श्री अरबिंदो ने स्वंतत्रता संग्राम के दौराम “वंदे मातरम” की रचना की जिसके चलते कई विदेशी सामानों का बहिष्कार हुआ और कई आक्रामक कार्यवाही हुई जो प्रभावित साबित हुई।
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