श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे मे :-

श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज :-

जन्म : 19 फरवरी 1630 शिवनेर का पहाड़ी किला, पूना (महाराष्ट्र)

मृत्यु : 3 अप्रैल 1680 रायगढ का किला, महाराष्ट्र

माता :- जीजाबाई
पिता :- शाहजी भोंसले
भाई (बड़ा) :- संभाजी भोंसले
बहिन :- नहीं
पत्नी :- सईबाई, सोयराबाई, पुतलाबाई, सक्वरबाई, काशीबाई जाधव, सगुणाबाई, लक्ष्मीबाई, तथा गुणवतीबाई.

छत्रपति शिवाजी महाराज- प्रमुख युद्धों का इतिहास पढ़ें



रायगढ़ का युद्ध (1646)

युद्ध किसके मध्य हुआ: रायगढ़ का युद्ध 1646 ई. में मराठा साम्राज्य के श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सल्तनत के जनरल मुल्ला अली के बीच लड़ा गया।

युद्ध का कारण: रायगढ़ का युद्ध शिवाजी महाराज के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था। इस युद्ध का मुख्य कारण था रायगढ़ किले को सुरक्षित रखना, जो राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना था और इसे मुगल सल्तनत से अलग-थलग करने की योजना थी।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में जीत हासिल की। वे आदिलशाही सल्तनत के जनरल मुल्ला अली को पराजित करके रायगढ़ किले का कब्जा कर लिया। इस जीत ने शिवाजी महाराज के नेतृत्व और युद्ध कौशल को महत्वपूर्ण पहचान दिलाई और उन्हें मराठा स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया। शिवाजी महाराज ने रायगढ़ किले को अपनी राजधानी बनाया और मराठा साम्राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।


तोरणा की लड़ाई (1647)

युद्ध किसके मध्य हुआ: तोरणा की लड़ाई 1647 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेना के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: तोरणा की लड़ाई का मुख्य कारण था तोरणा किले पर अधिकार का मुद्दा, जो बीजापुर सल्तनत के अधीन था। शिवाजी महाराज ने बीजापुर के खिलाफ अपने स्वतंत्रता संग्राम के अभियान का हिस्सा बनाने के लिए इस किले को जीतने का प्रयास किया।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय हासिल की। उन्होंने आदिलशाही सेना  के खिलाफ़ एक चतुर रणनीति का इस्तेमाल किया जिसमें वे अपनी सेना को तोरणा किले के चारों ओर छुपाकर रख दिया। जब आदिलशाही सेना  किले की ओर बढ़ी, तो शिवाजी महाराज ने उनपर हमला किया, जिससे आदिलशाही सेना  को हार का सामना करना पड़ा और तोरणा किला मराठा साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया। यह विजय शिवाजी महाराज की बढ़ती शक्ति और महत्वाकांक्षा का प्रतीक थी।

तंजावुर की लड़ाई (1656)

युद्ध किसके मध्य हुआ: तंजावुर की लड़ाई 1656 ई. में मराठा साम्राज्य के 'छत्रपति शिवाजी महाराज' और मदुरै के 'नायक राजा' के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: तंजावुर की लड़ाई का मुख्य कारण था तंजावुर शहर की महत्ता और उस पर अधिकार। यह शहर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, और शिवाजी महाराज ने इसे जीतकर अपनी आय में वृद्धि की।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। उन्होंने मदुरै के नायक राजा की सेना के खिलाफ चतुर रणनीति का उपयोग किया और अपनी सेना को तंजावुर शहर के चारों ओर छुपाकर रखा। जब नायक राजा की सेना शहर पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी, तो शिवाजी महाराज ने उनपर पीछे से हमला किया, जिससे नायक राजा की सेना को हार का सामना करना पड़ा और तंजावुर शहर पर मराठा साम्राज्य का कब्जा हो गया।

कल्याण की लड़ाई (1657)

युद्ध किसके मध्य हुआ: कल्याण की लड़ाई 1657 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सेना के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: कल्याण की लड़ाई का मुख्य कारण था कल्याण शहर की महत्वपूर्णता, जिसे शिवाजी महाराज ने अपनी आय के वृद्धि के लिए इसे जीतने का प्रयास किया।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। उन्होंने एक साहसिक योजना का इस्तेमाल किया और अपनी सेना को रात में कल्याण शहर पर हमला करने के लिए भेजा। इस हमले से मुगल सेना चौंक गई और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यह विजय शिवाजी महाराज की बढ़ती शक्ति और महत्वाकांक्षा का प्रतीक थी, और इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने मुगल साम्राज्य के खिलाफ़ अपने स्वतंत्रता संग्राम को और विस्तार दिया ।

प्रतापगढ़ का युद्ध (1659)

युद्ध किसके मध्य हुआ: प्रतापगढ़ का युद्ध 1659 ई. में छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफजल खान के मध्य हुआ । 

युद्ध का कारण: प्रतापगढ़ का युद्ध दक्कन (दक्षिणी) क्षेत्र में वर्चस्व के लिए लड़ा गया था।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। आदिलशाही सेनापति अफजल खान को शिवजी महाराज अपने वाघनख से मार देते है। लगभग 5,000 सैनिक मारे गए और इतने ही घायल हुए। इस घटना के बाद शिवाजी महाराज को एक कुशल नेता के रूप में पहचान मिली। अफ़ज़ल खाना जैसे शक्तिशाली सेनापति की हार के कारण छत्रपति शिवाजी महाराज की सैन्य लोकप्रियता पूरे भारत में बढ़ गई।

पवन खंड की लड़ाई (1660)

युद्ध किसके मध्य हुआ: पवन खंड की लड़ाई 1660 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही सेना के जनरल सिद्दी मसूद के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: पवन खंड की लड़ाई का मुख्य कारण था विशालगढ़ किले की महत्वपूर्णता और इसके बाद मुगलों और आदिलशाहों की आशंकाओं को बढ़ा दिया।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। उन्होंने अपने सैनिकों को एक नई युद्ध रणनीति में प्रशिक्षित किया, जिसमें वे जंगलों और पहाड़ों के माध्यम से छिपकर चलते और दुश्मन को पीछे से हमला करते थे । इस रणनीति ने उन्हें मुगल सेना पर एक निर्णायक जीत हासिल करने में मदद की।

सोलापुर की लड़ाई (1664)

युद्ध किसके मध्य हुआ: सोलापुर की लड़ाई 1664 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेना के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: सोलापुर की लड़ाई का मुख्य कारण था सोलापुर शहर की महत्वपूर्णता, जिसे शिवाजी महाराज ने अपनी आय के वृद्धि के लिए जीतने का प्रयास किया।

युद्ध में विजय: शिवाजी महाराज ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की। उन्होंने एक चतुर रणनीति का इस्तेमाल किया और अपनी सेना को सोलापुर शहर के चारों ओर छिपाकर रखा। जब आदिलशाही सेना शहर पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी, तो शिवाजी महाराज ने उन्हें पीछे से हमला किया, जिससे आदिलशाही सेना को हार का सामना करना पड़ा और सोलापुर शहर मराठा साम्राज्य के अधिकार में आ गया।

पुरंदर की संधि (1665)

युद्ध किसके मध्य हुआ: पुरंदर की संधि 1665 ई. में पुरंदर किले में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आमेर महाराजा जय सिंह प्रथम के बीच हुई।

युद्ध का कारण: इस संधि का मुख्य कारण था मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज की स्वतंत्रता की मांग और मुग़ल सम्राट औरग़ज़ेब के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करना।

युद्ध में विजय: पुरंदर की संधि के तहत, शिवाजी महाराज ने मुग़लों को 23 किले सौंप दिए, बदले में उन्हें अपनी स्वतंत्रता बरकरार रखने की अनुमति मिली। इस संधि के माध्यम से, मुग़ल सम्राट औरग़ज़ेब ने शिवाजी महाराज को स्वतंत्र शासक के रूप में मान्यता दी, जिससे मराठा साम्राज्य को अपनी आजादी का अधिकार मिला। इसके परिणामस्वरूप, यह संधि दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद था, और इसने दोनों सम्राटों के बीच सामंजस्य स्थापित किया।

उमरगढ़ की लड़ाई (1666)

युद्ध किसके मध्य हुआ: उमरगढ़ की लड़ाई 1666 ई. में उमरगढ़ किले के पास मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और मुग़ल सेना के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का कारण: इस लड़ाई का मुख्य कारण था, मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज की उमरगढ़ किले पर अधिकार  प्राप्त करने की इक्षा और मुग़ल सेना से प्रतिरक्षा करने की आवश्यकता।

युद्ध में विजय: उमरगढ़ की लड़ाई में, शिवाजी महाराज ने मुग़ल सेना को पराजित किया और उमरगढ़ किले पर कब्जा कर लिया। इस जीत से शिवाजी महाराज ने मुग़ल सेना के खिलाफ अपनी युद्ध कौशल और नेतृत्व को प्रमाणित कर दिया, और इसने मराठा साम्राज्य के विकास को भी बढ़ावा दिया।

शिंदे वंश के साथ युद्ध (1670-71)

युद्ध किसके मध्य हुआ: शिवाजी महाराज और शिंदे वंश के बीच यह युद्ध 1670 ई. से 1671 ई. तक चला।

युद्ध का कारण: इस युद्ध का मुख्य कारण था शिवाजी महाराज की अपने स्वतंत्र मराठा साम्राज्य के सीमाओं को बढ़ाने और शिंदे वंश के साथ समरसता स्थापित करने की इक्षा।

युद्ध में विजय: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने शिंदे वंश के साथ युद्ध किया और उन्हें हराया। इस जीत से शिवाजी महाराज ने अपनी बढ़ती शक्ति और महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित किया, और यह विजय, उनके साम्राज्य के विकास और विस्तार में मदद की।

रणनीति: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने एक कुशल रणनीति का इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी सेना को शिंदे वंश की सेना के चारों ओर छिपाकर रख दिया। जब शिंदे वंश की सेना लड़ाई के लिए तैयार थी, तो शिवाजी महाराज ने उनपर पीछे से हमला किया, जिससे शिंदे वंश की सेना को हार का सामना करना पड़ा।

बरार और खानदेश की विजय (1673-74)

युद्ध किसके मध्य हुआ: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने बरार और खानदेश क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। यह लड़ाई 1673 ई. से 1674ई. तक चली।

युद्ध का कारण: इस युद्ध का मुख्य कारण शिवाजी महाराज का एक रणनीति के तहत अपने साम्राज्य का विस्तार करना, खासकर उत्तर में बरार और खानदेश क्षेत्रों तक अपने साम्राज्य की स्थापना करना।

युद्ध में विजय: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने बरार और खानदेश क्षेत्रों को जीत लिया। इससे उनके साम्राज्य का विस्तार हुआ और वे एक महत्वपूर्ण राजकारणिक धारा की स्थापना करने में सफल रहे।

रणनीति: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने एक साहसिक योजना का इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी सेना को बरार और खानदेश क्षेत्रों में घुसपैठ करने और उन्हें जीतने के लिए भेजा, और उनपर विजय प्राप्त की। जिससे परिणामस्वरूप उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

शिवाजी महाराज की गुरिल्ला युद्ध शैली

17वीं सदी में शिवाजी महाराज ने मुगल सेना के विरुद्ध सफलतापूर्वक युद्ध लड़ने के लिए गुरिल्ला युद्ध शैली का इस्तेमाल किया। गुरिल्ला शब्द का अर्थ है 'छोटे दल'। शिवाजी ने पहाड़ी क्षेत्रों की भूगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल एक लघु तथा चुस्त-दुरुस्त मराठा सेना तैयार की थी।
 

ये सैनिक तेजी से चलने और लड़ने में प्रशिक्षित थे। वे अकस्मात मुगल सेना पर हमला करते और तुरंत पहाड़ों में वापस लौट जाते और छिप जाते। रात के समय छिपकर हमला करना भी इन योद्धाओं की एक खासियत थी। शिवाजी की सेना में तोपखाना नहीं था, इसलिए ये योद्धा तलवारबाजी और लघु हथियारों के इस्तेमाल में निपुण थे।

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